वादे पे वो ऐतबार नहीं करते,
हम जिक्र मौहब्बत सरे बाजार नहीं करते,
डरता है दिल उनकी रुसवाई से,
और वो सोचते हैं हम उनसे प्यार नहीं करते|
हम जिक्र मौहब्बत सरे बाजार नहीं करते,
डरता है दिल उनकी रुसवाई से,
और वो सोचते हैं हम उनसे प्यार नहीं करते|
(Mirza Ghalib)
इस दिल को किसी की आहट की आस रहती है,
निगाह को किसी सूरत की प्यास रहती है,
तेरे बिना जिन्दगी में कोई कमी तो नही,
फिर भी तेरे बिना जिन्दगी उदास रहती है॥
(Mirza Ghalib)
अब कहाँ रस्म घर लुटाने की
अब कहाँ रस्म घर लुटाने की
बरकतें थीं शराबख़ाने की
कौन है जिससे गुफ़्तगू कीजे
जान देने की दिल लगाने की
बात छेड़ी तो उठ गई महफ़िल
उनसे जो बात थी बताने की
साज़ उठाया तो थम गया ग़म-ए-दिल
रह गई आरज़ू सुनाने की
चाँद फिर आज भी नहीं निकला
कितनी हसरत थी उनके आने की
कौन है जिससे गुफ़्तगू कीजे
जान देने की दिल लगाने की
बात छेड़ी तो उठ गई महफ़िल
उनसे जो बात थी बताने की
साज़ उठाया तो थम गया ग़म-ए-दिल
रह गई आरज़ू सुनाने की
चाँद फिर आज भी नहीं निकला
कितनी हसरत थी उनके आने की
(Faiz Ahmad Faiz)
उड़ने दे इन परिंदो को आज़ाद फ़िज़ा में ग़ालिब
जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएंगे किसी रोज़
(Mirza Ghalib)
न रख उम्मीद -ए- वफ़ा किसी परिंदे से इक़बाल
जब पर निकल आते हैं , तो अपना भी आश्यना भूल जाते है
(Allama Iqbal)
1 comment:
Nice
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